( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
गर्व मत कर देहका ,
यह स्वप्न सम
जग - बाग है || टेक ||
फूल फूलनको लगाया ,
फूलने फूले बनाया ।
एक क्षणमें फूल सूखे
लग गयी जब आग है ॥ १ ॥
अजब दुनियाकी घडन ,
मालुम नहीं किसने करी ।
क्षण एकमें है बादशाह ,
अरु एक क्षणमें फाग है ॥२ ॥
कोइ ना जगमें रहे ,
जोगी तपी और बादशाह ।
हो गये सारे फना ,
निकले निराला लाग है || ३ ||
कहत तुकड्या मौज है ,
देखो निराली आँखसे ।
इसका बनैया कौन है ,
यह मोहिनीका सुहाग है ॥४ ॥
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